मेघऋषि थे सच्चे मानव, ब्रह्माजी के अनन्य उपासक।
शिव शक्ति के परम प्रचारक, जीव मात्रा के थे उद्धारक।। 1।।पाठ पढ़ाया मानवता का, मानव जीवन की महता का,
मानव योनि बड़ी अमोलक, सत्य प्रेम की फैले पताका।। 2।।सरल सहज जीवन जीते थे, प्रेम भाव हिय में रखते थे।
उनको मन में दया भाव था, सत्य बोध में रत रहते थे।। 3।।महाऋषि कपड़े बुनते थे, सब जीवों का दुःख हरते थे।
मानव को नव राह बताकर, सत्य के पथ पर चलते थे।। 4।।उनकी शिक्षा बड़ी सरल थी, जो कहते वो ही करते थे।
द्वेष भाव से मानव पिछड़े, हिल मिलकर सबसे रहते थे।। 5।।वो कहते अहंकार पाप है, मिथ्याभिमान महापाप है।
ईष्र्यालु दुःख से न उबरता, मानव का सही संताप है।। 6।।अनन्त शक्ति की खान है मानव, सब जीवों से महान् है मानव।
आओ हम सब मिलकर गांए, उनकी शिक्षा को हम फैलाएं।
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